Mrityunjay

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अमावस को चांद देखा मेने

अमावस को चांद देखा मैने

काली अंधेरी अमावस की रात थी
दिल मैं डर लगने वाली बात थी

कोई घूमती है इन वादियों में
उलझती है हुस्न की जालों में

चांद की रोशनी धीमी सी पड़ी
कैसी ये विपदा है आन पड़ी

हसने की आवाज आने लगी
वो प्यासी रूह गाने गाने लगी

घुंगरोऊ का बजना लाजमी था
कैसे न डरूँ मैं भी आदमी था

ये पकड़ के अब खायेगी मुझें
अपनी गुफा में ले जायेगी मुझें

मदत यहाँ अब किसे मगूगा मैं
शायद आखिरी दुआ करूंगा मैं

जब वो रूह प्यासी पास आयीं
मुझे वो नजर उदास आयीं

डर के उठा तब दोस्त ने पुकारा
आदि क्या सपना देखा दोबारा

नींद से मुझे जागना पड़ा
दोस्तो के साथ हंसना पड़ा

सपना भी झूठ देखा मैने
अमावस को चांद देखा मैने


-Mrityunjay 

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4 Comments

Author Pawan saxena

06-Aug-2021 12:53 PM

good

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Mrityunjay

06-Aug-2021 03:39 PM

Shukriya apka

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Author sid

06-Aug-2021 12:28 PM

👍👍👍👍

Reply

Mrityunjay

06-Aug-2021 03:39 PM

Shukriya apka

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